प्रमुख सचिव संस्कृति श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा है कि भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व के साथ अंग्रेजों द्वारा छेड़छाड़ की जाती रही है। आज भी अंग्रेजों का लिखा इतिहास पढ़ रहे हैं और उसे ही पढ़ा रहे हैं। इस संस्कृति से बाहर आने के साथ ही अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर इतिहास को समझने की आवश्यकता है। श्री श्रीवास्तव आज राज्य संग्रहालय में 'मध्यप्रदेश के इतिहास एवं पुरातत्व में नवीन शोध'' विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
प्रमुख सचिव श्री श्रीवास्तव ने हड़प्पा सभ्यता के बजाय नर्मदा घाटी की सभ्यता को पढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। नर्मदा सभ्यता तो हड़प्पा सभ्यता से भी प्राचीन एवं सम्पन्न है। आज भी हम हड़प्पा सभ्यता को तीन हजार वर्ष प्राचीन बताते हैं, जबकि आठ हजार वर्ष प्राचीन होने के प्रमाण मिल चुके हैं। उन्होंने नर्मदा घाटी की रिमोट सेंसिंग तकनीक से अनुसंधान करवाने पर बल दिया।
पुरातत्व में अनुसंधान की राज्य-व्यापी योजनाएँ बनेगी : पुरातत्व आयुक्त श्री राजन
पुरातत्व आयुक्त श्री अनुपम राजन ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। श्री राजन ने कहा कि मध्यप्रदेश में पुरातत्व में अनुसंधान की राज्य-व्यापी योजनाएँ बनायी जायेंगी। इसके लिये प्रदेश के पुरातत्व विशेषज्ञ और प्रोफेसर्स की बैठक बुलाई जायेगी। विषय प्रवर्तन जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के प्रोफेसर डॉ. एस.के. द्विवेदी ने किया।
संगोष्ठी में प्रस्तुत किये गये शोध-पत्र
संगोष्ठी के पहले दिन पुरातत्व की विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञों ने अपने-अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किये। डेक्कन कॉलेज और रिसर्च इंस्टीट्यूट की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. शीला मिश्रा ने 'खरगोन जिले की पचास हजार वर्ष प्राचीन सभ्यता', जीवाजी विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. आर.पी. पाण्डे ने 'प्रागैतिहास काल में जलवायु परिवर्तन', इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के डायरेक्टर प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने 'अनूपपुर जिले की हजार वर्ष प्राचीन सभ्यता का उत्खनन से प्राप्त अवशेषों' के आधार पर शोध-पत्र प्रस्तुत किया। दो-दिवसीय संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालय के 55 शोध अध्येता के शोध आलेख प्रस्तुत होंगे।