दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी की कि रियो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए पहलवान नरसिंह यादव का चयन किसी के प्रभाव में आकर नहीं किया गया और अदालत ने उस नीति में खामियां ढूंढ़ने के लिए सुशील कुमार से भी सवाल किया जिसके दम पर वह तीन बार ओलंपिक खेल चुका है। न्यायमूर्ति मनमोहन ने सुशील के वकील से पूछा, ‘भारतीय कुश्ती महासंघ की नीति लंबे समय से चली आ रही है और अब आप कह रहे हैं कि यह गलत है।’ उन्होंने कहा, ‘ 2004, 2008 और 2012 में सुशील इसी नीति के आधार पर तीन बार ओलंपिक खेलने गया। महासंघ की नीति तभी से चली आ रही है।’
सुशील की ओर से सीनियर एडवोकेट अमित सिब्बल ने अदालत से कहा कि भारतीय कुश्ती महासंघ को खेल आचार संहिता का पालन करना चाहिए और ओलंपिक जैसे अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों के लिए चयन ट्रायल होने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘खेल आचार संहिता का पालन होना चाहिए। मेरे चयन के खिलाफ कोई अदालत में नहीं गया। भारत में कुश्ती में डब्लूएफआइ का एकाधिकार है।’
अदालत ने कहा, ‘यादव ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया और पदक जीता। वह चैंपियन है। उसका चयन किसी प्रभाव में आकर नहीं किया गया। उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता साबित की है।’ सिब्बल ने कहा कि वह इससे इनकार नहीं कर रहे कि यादव ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतकर भारत को ओलंपिक कोटा दिलाया लेकिन चयन ट्रायल होना चाहिए।
इसके बाद अदालत ने सिब्बल से पूछा, ‘सुशील दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से है, इसमें कोई शक नहीं लेकिन अगस्त 2014 के बाद से वह सक्रिय नहीं हैं। क्या अगस्त 2014 के बाद से आपने कोई टूर्नामेंट जीता।’ सिब्बल ने इस पर कहा कि विश्व चैंपियनशिप 2015 के ट्रायल के समय सुशील चोटिल था और चोट से उबरने के बाद वह विभिन्न भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कोचों के साथ अभ्यास कर रहा है।
अदालत दोनों पक्षों की दलीलें सुन रही थी जो गुरुवार तक चलेगी। दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील ने रियो ओलंपिक में पुरुषों की 74 किलो फ्रीस्टाइल स्पर्धा में भारत के प्रतिनिधित्व के लिए डब्लूएफआइ को चयन ट्रायल का निर्देश देने के लिए याचिका दायर की है।